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ग़ज़ल
एक इशारे में बदल जाता है मयख़ाने का नाम
चश्म-ए-साक़ी तेरी गर्दिश से है पैमाने का नाम
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई
तो ब-रंग-ए-ख़ूँ मिरी आरज़ू मिरी चश्म-ए-तर से टपक गई
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
चश्म-ए-यक़ीं से देखिए जल्वा-गह-ए-सिफ़ात में
हुस्न ही हुस्न है तमाम इश्क़ की काएनात में
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
उन की चश्म-ए-मस्त में पोशीदा इक मय-ख़ाना था
जाम था साग़र था मय थी शीशा था पैमाना था
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
नज़र मिलते ही बरसे अश्क-ए-ख़ूँ क्यूँ दीदा-ए-तर से
रगें क़ल्ब-ओ-जिगर की छेड़ दीं क्या तुम ने नश्तर से
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
बा-वक़ार लहजे में पुर-असर कहा जाए
दिल का हाल कुछ भी हो मुख़्तसर कहा जाए
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
सूद-ओ-ज़ियाँ की फ़िक्र से बेगाना बन के जी
जीने की आरज़ू है तो दीवाना बन के जी